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प्यार का ओल्ड वर्जन

Alok Tiwari
Alok Tiwari
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आज वे बातें गुजरे जमाने की लगती हैं। प्यार वैसा नहीं रहा, जैसा किताबों और फिल्मों में था। अपने आसपास देखिए, सिलेब्रिटीज के जितने किस्से छपते हैं, वे या तो ब्रेकअप के हैं या नए अफेयर्स शुरू होने के। साल-दो साल से ज्यादा रोमांस नहीं टिकता, बल्कि शुरू होता ही इस इंतजार के साथ है कि अब खत्म होगा, तब खत्म होगा। यह इंतजार कभी बेकार नहीं जाता और जब ऐसा होता है, पब्लिक का मजा दोगुना हो जाता है। पूरी दुनिया में यह हो रहा है और बड़े करीने, इतमीनान और एहतियात से हो रहा है। ज्यादा आंसू नहीं बहाए जाते, जिंदगी चलती रहती है, ऐडजस्टमेंट हो जाते हैं। जल्द ही एक नई कहानी शुरू हो जाती है।

पुराना जमाना होता तो ऐसे शख्स को कैसानोवा कहा जाता। बेवफाई, ब्रेकअप विलेन को शोभा देते थे, हीरो को नहीं। लेकिन आज कौन कैसानोवा नहीं होना चाहता? मर्दवादी नाराज न हों। यह बात महिलाओं पर भी लागू होती है। लेकिन ये महज फिल्मी मामला नहीं है। यंग जेनरेशन और यंग हो रही जेनरेशन की प्राइवेट लाइफ में झांकिए। अफेयर होना वहां जितना आसान है, टूटना उससे भी आसान। ब्रेकअप या फिर डंप कर देना रोजमर्रा की बात है। हर कोई किसी का एक्स है और दो-चार अफेयर्स न हुए हों, तो जैसे मजा ही नहीं आता। जानकार लोग परेशान हैं कि डिवोर्स के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। पार्टनर के लिए कमिटमेंट गायब हो रहा है और अमीर देशों के शहरों में तो आधी आबादी फ्लोटिंग रिलेशन में जी रही है।

लेकिन अगर ऐसा है, तो लव स्टोरीज क्यों आज भी इतनी पॉप्युलर हैं? क्यों किताबों में, सिनेमा में अंतहीन प्यार के किस्से दोहराए जा रहे हैं? क्यों प्यार के नाम पर इतने गीत लिखे जा रहे हैं? अगर प्यार की ताकत कमजोर पड़ गई होती तो उसे आर्ट के बाजार में भी मरते दिखना चाहिए था। यह बात मुझे हमेशा हैरान करती है कि एक वैंपायर का प्यार भी क्यों सुपरहिट हो जाता है। बिना प्यार के कोई कहानी नहीं कही जा सकती, वेस्ट में भी, जिसके बारे में माना जाता है कि वहां सेक्स ने इमोशनल लव पर बाजी मार रखी है।

मैं बर्टेंड रसल के इस अंदाजे को सही मानता आया हूं कि रोमांस, यानी वह प्यार जिसे हम इमोशनल लेवल पर महसूस करते हैं, हाल का डिवेलपमेंट है। रोमांस शुरू में नहीं था। तब औरत-मर्द के रिश्ते में कुदरती जरूरतें हावी थीं। रोमांटिक लव तब पैदा हुआ, जब इस रिश्ते पर पाबंदियां लगने लगीं। सेक्स पर जितनी बंदिश, उतना ज्यादा रोमांस। बहुत पुराने लिटरेचर में देखिए, प्यार या तो फिजिकल होगा या कैजुअल किस्म का। मिडल एज में वह भयानक रूप से रोमांटिक होने लगता है। फिजिकल पीछे चला जाता है और इमोशनल इस हद तक बढ़ जाता है कि आगे चलकर हीरोइन को शक होने लगता है कि हीरो मुझसे प्यार करता है या मेरे शरीर से? हीरो को भी साबित करना होता है कि उसका प्यार शरीर से परे कुछ हवाई किस्म का है। प्यार को सबसे बड़ा खतरा वासना समझ लिए जाने से लगता है।

रोमांटिक लव की इस थ्योरी से यह नतीजा लगाया जा सकता था कि जब औरत-मर्द के रिश्ते से बंदिशें मिटने लगेंगी तो प्यार को सिमटना होगा। औरतों की आजादी, टेक्नॉलजी, सोशल इंटरेक्शन और प्रेंग्नेंसी पिल्स जैसी कई बातें हैं, जिन्होंने पाबंदियों को बेकाम कर दिया है। यह सिलसिला लगातार चल रहा है और खुलेपन के नए ट्रेंड ग्लोबल लेवल पर आवाजाही कर रहे हैं। जाहिर है, ऐसे में रोमांस को मरना ही था और फिजिकल, फ्लोटिंग, आजाद रिश्तों की पुरानी दुनिया को लौटना ही था।

अब क्या होगा? क्या रोमांस पूरी तरह दम तोड़ देगा? आर्ट में जिस रोमांस पर हम आहें भर रहे हैं, क्या वह इसकी आखिरी स्टेज है? गुजरे जमाने की यादों की आखिरी आहट? क्या भविष्य में हम कुछ सदियों के इस शौक को भूल जाएंगे और प्यार की अमर कहानियों पर हैरान हुआ करेंगे? कुर्बानी पर तो तब हंसी ही आएगी।

थ्योरी तो यही कहती है। वेस्ट में एक वक्त फ्री सेक्स का नारा इसीलिए चला था। हिप्पी कोई पाबंदी नहीं मानते थे। रसल भी कहते हैं कि मैरिज खत्म हो जाएगी, जो कि कमिटेड रिलेशनशिप का सबसे बड़ा सोशल सिस्टम है। मॉरेलिटी के हमारे तमाम मौजूदा पैमाने उलट जाएंगे।
लेकिन मुझे लगता है कि तस्वीर इतनी ब्लैक ऐंड वाइट नहीं होगी। उसमें धुंधले ही सही, दूसरे रंगों के शेड्स भी बचे रह जाएंगे। इसलिए नहीं कि भविष्य के लोग हमारे रोमांस से सबक लेंगे, बल्कि इसलिए कि रोमांस भी एक इमोशन है और इमोशन तो कभी खत्म होंगे ही नहीं। अगर वे खत्म हो जाएं तो इंसान भी नहीं बचेंगे। इमोशन एक कुदरती जरूरत है, सर्वाइवल मिकेनिजम है। मुझे यह भी लगता है कि पुराने जमाने में भी रोमांस गायब नहीं रहा होगा। वह उस वक्त के चलन में नहीं होगा, इसलिए लिटरेचर से बाहर रहा। आगे चलकर भी लोग किसी से प्यार करेंगे और कुर्बानी की हद तक करेंगे। वे लोग कम होंगे, लेकिन वे इफरात में थे ही कब? प्यार की चाहत कभी खत्म नहीं होती और जरूरी नहीं कि उसके लिए कई रास्ते तलाशे जाएं। वह हजार में भी नहीं मिल सकता और एक पर भी अपना मुकाम पा सकता है।

द्वारा

आलोक तिवारी

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